पृथ्वी (धरती )और उसके चारों ओर का आवरण अर्थात पर्यावरण आज घोर संकट में है । संपूर्ण धरती व पारिस्थितिकी तंत्र में लाखों-करोड़ों वर्षों से ईश्वर ने बहुत कुछ सहेज कर रखा था हम मनुष्यों ने विकास और प्रगति के नाम पर लोभ व स्वार्थ वश ना केवल इस पर अतिक्रमण किया अपितु घोर विनाश का तांडव भी मचा रखा है । इस बीच हम यह भूल गए कि पक्षियों, पशुओं ,वनस्पतियों ,समुद्री व जलीय जीवों आदि सबका धरती आकाश व जल के प्राकृृतिक स्वरूप पर पूरा हक व अधिकार है । धरती पर रहने वाले हम सभी एक दूसरे के सहयोगी व उपयोगी तो हैं ही एक दूसरे पर हमारी आश्रितता भी है , सहअस्तित्ववाद के सिद्धांत को अपनाये बिना हम सबका जीवन संकट में ही नहीं असंभव भी है । जिन विषयों के संबंध में हम चर्चा कर रहे हैं इसे भली-भांति जानने और समझने वाले हम मानव ही प्रकृति के नियमों को तोड़ने मरोड़ने और अपने हिसाब से प्रतिपादित करने की दिशा में आगे बढ़ चले हैं जिससे संपूर्ण प्राणी जगत का ही नहीं हमारा भी जीवन संकट में दिखने लगा है । हम पृथ्वी पर्यावरण या पारिस्थितिकी को बचाने के लिए प्रयत्नशील नहीं है हम सिर्फ धन अर्जन करने की होड़ में आगे बढ़ रहे हैं, अपनी अर्थव्यवस्था बचाना चाहते हैं ,उपभोग बढ़ाना चाहते हैं , हर किसी के घर में कार पहुंचाकर हम प्रदूषण रोकना चाहते हैं? ????हर खेतों में रासायनिक खाद पहुंचा कर गुणवत्ता युक्त अनाज (भोजन) की चाह रखते हैं ????बिजली से आधारित गैजेट्स हमने ऐसे विकसित कर लिए हैं जो हमारे लिए छद्म सुख-सुविधाओं का आधार है । जी हां मानो हमने संपूर्ण प्रकृति पर विजय प्राप्त कर ली हो गर्मी में एयर कंडीशन ठंड में गर्मी का एहसास दिलाने वाले यंत्र बरसात से बचने के अनोखे व्यवस्थाएं और बहुत सारे यंत्र पर ये सब प्रकृति के लिए विनाश के साधन प्रदूषण के हीे साधन ज्यादे हैं । क्या इससे प्रकृति बच पाएगी ???? आज पर्यावरण को सबसे ज्यादा संवारने सजाने और सुंदर स्वरूप प्रदान करने की बड़ी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी हम पर है तो आइए तथाकथित भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त अप्राकृतिक कृत्रिम वातावरण से निकलकर प्रकृति की ओर लौटें यदि हम आज नहीं जागे तो बहुत देर हो जाएगी ।


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